Tuesday 1 December 2015

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Tipu Sultan एक राष्ट्रप्रेमी Part-2

यह स्पष्ट है कि सच्चाईयों को न देखने वाले इतिहासकार (Historian) एक ऐसी राजनितिक Turf war के व्यापक Situation की अनदेखी कर रहे थे जिसमें friend और enemy की पहचान इस तरह कि जाती थी कि कौन अंग्रेजों के साथ जाता है और कौन साम्राज्यवादी (Imperialistic) अंग्रेज शासकों के चंगुल से स्वतंत्र (Free) रहने के लिए प्रतिबद्ध है. यदि के कुर्गी लोगों और नायरों को दबाने के लिए War आवश्यक था जो Karnataka के नवाबों के Against भी युद्ध लड़े गये जो मुसलमान थे और अंग्रेजों के पिठ्ठू थे. Dr. B. N. Pandey अपनी Book “Aurangzeb And Tipu Sultan: उनकी धार्मिक policies का मुल्यांकन” (Institute of Objective Studies, New Delhi) में लिखते हैं: यदि उसने कूर्ग के हिन्दुओं, मंग्लौर के ईसाईयों और मालाबार के नायरों को कुचला तो यह इस Reality के कारण था कि वे अंग्रेजों के साथ मिलकर Tipu Sultan कि power को कमजोर करना चाहते थे. यदि किसी के अन्दर इस तरह की प्रवृतियाँ महसूस कि चाहे वह मालाबार के मौपिला या महादेवी मुसलमान या सवानूर के नवाब हों या निजाम हैदराबाद हों, उनको भी नहीं बख्शा.

इसलिए Tipu Sultan को चरमपंथी (Extremists) कहना बहुत अधिक गलत है. उनकी कठोरता उन लोगों के प्रति थी जिन्होंने तख्ता पलट करने के लिए अंग्रेजों का साथ दिया, और इस तरह उनकी कठोरता धर्म से Inspired होने के बजाए Politics से Inspired थी.

यदि ऐसा न होता तो Mahatma Gandhi ने Tipu Sultan की प्रशंसा के पुल इस तरह न बंधे होते, “वह हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतिक थे” (Tipu Sultan was a symbol of Hindu-Muslim unity). History को तोड़ने मरोड़ने का एक प्रमुख मामला Dr. B. N. Pandey ने उठाया जो उस समय Orissa के Governor थे. जब उन्होंने कूर्ग में जनता के नरसंहार (Carnage) का उल्लेख पाया तो उन्होंने Mysore Gazetteer से Reference ढूँढना चाहा.

Dr. Pandey का सामना एक History कि Textbook से हुआ जो Allahabad के Eyglo-Bengali College में पढाई जाती थी जिसमें यह Claim किया गया था कि “तीन हजार ब्राह्मणों ने इसलिए Suicide की कि Tipu Sultan बलपूर्वक उन्हें इस्लाम धर्म में ले लाना चाहते थे. इस पुस्तक के लेखक Kolkata University के संस्कृत विभाग के HOD और बहुत प्रसिद्ध विद्वान Dr. Hari Prasad Shastri थे.

Dr. Pandey ने इस Book के Author Dr. Shastri को तुरंत एक Letter लिखा और पूछा कि ये Example उन्हें जिन Source से मिले हैं उनका Reference दें. कई बार याददिहानी करने के बाद Dr. Shastri ने उत्तर दिया कि उन्होंने यह जानकारी Mysore Gazetteer से प्राप्त किया है. इसलिए Dr. Pandey ने उस समय Mysore University के Vice Chancellor Sir Vijender Nath Seal से अनुरोध किया कि उनके लिए Dr. Shastri के कथन की Gazetteer से Confirm करा दें. Sir Vijender ने उनके Letter को Pro. Srikantyya के पास भेजा जो Gazetteer के नए Edition पर काम कर रहे थे. Srikantyya ने Letter लिखकर बताया कि ऐसी किसी घटना का वर्णन नहीं है और एक Historian के रूप में वह आश्वस्त हैं कि इस तरह की कोई घटना घटित नहीं हुई थी. Pro. Srikantyya ने यह भी कहा कि उस समय Tipu Sultan के Prime Minister और Chief Commander दोनों ब्राह्मण थे. उन्होंने 156 मंदिरों कि एक सूची भी संग्लन की जो Tipu Sultan के राजकोष से Annual Funding प्राप्त किया करते थे. Tipu Sultan द्वारा Donation किये हुए एक शिव-लिंग कि पूजा आज भी नानजंगूड़ मंदिर में की जा रही है. श्री रंगापटनम का रंगनाथ मंदिर Tipu Sultan के Palace से काफी निकट था जहाँ से वह मंदिर के घंटे और मस्जिद कि अजानों को समान सम्मान के साथ सुनते थे. (Impact International, London, point 28, July 1998)

बाद में Research से यह मालूम हुआ कि Shastri ने ब्राह्मणों की Suicide की इस कहानी को Kernel Miles की book History of the Mysore से लिया था जिसमे Miles ने यह Claim किया था कि उन्होंने इस book को एक फारसी पाण्डुलिपि से लिया है जो Queen Victoria कि Personal Library में मौजूद है. जब Dr. Pandey ने इसकी भी जाँच की तो उनको पता चला कि Queen Victoria कि Library में ऐसी कोई पाण्डुलिपि मौजूद नहीं. इसके बावजूद Dr. Shastri कि किताब High School कि History कि Textbook के रूप में सात राज्यों Assam, Bengal, Bihar, Orissa, Uttar Pradesh, Rajasthan और Madhya Pradesh में पढाई जा रही थी. इसलिए उन्होंने इस Textbook के बारे में अपने द्वारा किए गये All Communications को Kolkata University के Vice Chancellor Sir Ashutosh Chowdhry के पास भेजा. Sir Ashutosh ने तुरंत Shastri की किताब को Course से निकालने का आदेश दे दिया. इसके बावजूद कई वर्षों बाद सन् 1972 में Dr. Pandey को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि Suicide की यही कहानी अब भी Uttar Pradesh के Junior High School की History की book में पढाई जा रही थी. एक झूठ को History कि सच्चाई के रूप में Approval हो गई.

Tipu Sultan द्वारा मंदिरों को दी जाने वाली जागीरों और उपहारों कि संख्या इतनी है कि उनके विस्तार के लिए कई खण्डों कि आवश्यकता होगी. श्रृंगेरी में स्थित प्रसिद्ध मंदिर के अवशेषों से पिछले दशक के दौरान जो Document प्राप्त हुए हैं वह बताते हैं कि Tipu Sultan को यह जानकर बहुत दुःख हुआ कि पेशवा की सेनाओं ने एक मंदिर पर Attack किया था और उन्होंने उस पवित्र स्थान पर मूर्ति का जीर्णोधार “सल्तनत-ए-खुदादाद” के राजकोष से किया. उन्होंने Tamil Nadu के Kanjivaram में एक मंदिर के निर्माण के लिए 10,000 हून नक़द दिया और जब मंदिर बन कर तैयार हो गया तो उसकी रथ यात्रा में भाग लिया. उन्होंने Milcot के दो Communities के बीच Debate का Solution किया और दोनों Side के लोगों ने उनके Judgment को final decision के रूप में Accept किया. डिंडीगल के एक अभियान के अवसर पर उन्होंने आदेश दिया कि South की ओर से गोली न चलायी जाए इसलिए कि राजा का मंदिर वहाँ स्थित था. प्राचीन कन्नड़ साहित्य Tipu Sultan की प्रशंसाओं से भरा हुआ है और इन प्रशंसाओं का प्रदर्शन सीवी (Karnataka के Bangalore जिले में) में स्थित प्रसिद्ध मंदिर कि छत पर मौजूद लेखों में भी हुआ है. Tipu Sultan की प्रशंसा करने वाले आल्हे आज भी प्राचीन Mysore राज्य के देहाती क्षेत्रों में गाए जाते हैं. यह एक सच्चाई है कि मंदिर की छतों पर लिखे गये लेख इस बहादुर शासक की शहादत के 50 वर्ष बाद लिखे गये थे. इससे इस बात की पुष्टि होती है कि जनता के अन्दर मृत्यु के बहुत बाद भी इस शासक के प्रति कितना आदर-सम्मान था. यदि एक शासक से उनकी हिन्दू प्रजा घृणा करती तो उसे यह सम्मान न मिलता कि जनाज़े के समय खून से लथपथ उसके शव के सामने लोग सजदे कर रहे थे. लेकिन History के विवरण बताते हैं कि जिस समय विजेता ब्रिटिश सैनिक श्रीरंगापटनम में स्थित घरों को लूट रहे थे, उनकी हिन्दू प्रजा उसके महल के सामने उसके शव को शोक और विलाप के बीच सजदा करने के लिए कतार लगाए खड़ी थी. (बिस्टन, 1880 इसका उल्लेख मुहम्मद मुइनुद्दीन ने किया है, सन सेट ऐट श्रीरंगापटनम, Orient Logman, 2000) ऐसी आशा उस प्रजा से नहीं की जा सकती जिसका शासक कट्टर अत्याचारी हो.



                                                        “जो लड़ा था सिपाहियों की तरह

                                                      ऐसा भारत में कोई बादशाह न हुआ

                                                         रूह तो हो गई थी तन से जुदा

                                                          हाथ तलवार से जुदा न हुआ”
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