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Saturday 24 March 2018

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Save Water Save Life: पानी बचाएँ नहीं तो...

आज मैं आपलोगों के सामने पूरी दुनियाँ की सबसे बड़ी समस्या के बारे में बात करने जा रहा हूँ | ये समस्या पानी (WATER) की है, जिससे पूरी दुनियाँ के लोग आज परेशान है | आज जिनके पास पानी की सुविधा है वे मन चाहा पानी का इस्तेमाल करके बर्बाद कर रहे हैं, और पूरी दुनियाँ की ज्यादातर आबादी ऐसी है जिन की सबसे बड़ी समस्या पानी ही है | आज मैं आपको पुरे विस्तार में बतलाता हूँ कि भारत देश और दुनियाँ के बहुत से देशों की पानी की समस्या को लेकर क्या स्थिति है.....


ब्रिटिश कवि Samuel Taylor Coleridge की कविता 'The Rime of the Ancient Mariner' में एक पंक्ति है, 'Water, Water Aviary, No More Drop to Drink', यानी पानी तो हर जगह है, पर एक बूंद भी पीने के काबिल नहीं। करीब दो सदी पहले इन शब्दों को गढ़ते हुए सैम्युअल क्या आने वाले वर्षो की भविष्यवाणी (Prediction) कर रहे थे? क्या वह जाने-अनजाने उस जल संकट का कयास (Surmise) लगा रहे थे, जिसका सामना 21वीं सदी की दुनिया करने वाली थी? ये सवाल इसलिए, क्योंकि South Africa के Cape Town का गंभीर जल संकट दुनिया भर के सभी खास-ओ-आम के लिए चेतने (Consciousness) की घंटी है। ऐसी ही समस्या दुनिया के कई अन्य शहरों में भी सिर उठा रही है, जिसमें Bengaluru सहित India के अन्य महानगर (Metro City) भी शामिल हैं। हालात अब इतने गंभीर हैं कि दुनिया भर के 12 नेताओं (11 देशों के प्रमुख व पानी पर बने उच्च स्तरीय पैनल (High Level Panel) के एक विशेष सलाहकार) ने एक हफ्ता पहले ‘खुला पत्र’ जारी किया है, जिसमें लिखा गया है कि विश्व एक गंभीर जल संकट से गुजर रहा है। उनके शब्द हैं, ‘हमें पानी की हर बूंद का हिसाब रखने की जरूरत है’। इस पैनल में Mauritius, Mexico, Hungary, Peru, South Africa, Senegal and Tajikistan के President शामिल थे, तो Australia, Bangladesh, Jordan, Netherlands के प्रधानमंत्री (Prime Minister) बतौर विशेष सलाहकार Korea के पूर्व प्रधानमंत्री भी इस पैनल का हिस्सा थे। इस समूह का साफ कहना है कि समाज के लिए पानी के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व परिवेशी मूल्यों का फिर से मूल्यांकन होना चाहिए। पैनल मानता है, कि ‘पानी का इस तरह आवंटन होना चाहिए कि समाज को अधिक से अधिक समग्र लाभ मिले।

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 हकीकत यही है कि Cape Town के जलाशय लगातार तीन सूखे की वजह से सूख रहे हैं। यह एक बार फिर से साबित करता है कि अप्रत्याशित व असामान्य गंभीर घटनाएं सामान्य मौसमी पैटर्न को बुरी तरह प्रभावित कर रही हैं, और अतीत अब ज्यादा दिनों तक भविष्य का बैरोमीटर नहीं हो सकता। ग्लोबल वार्मिग और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी मौसमी परिघटनाएं बार-बार घटित हो रही हैं। लिहाजा योजनाकारों और नीति-निर्माताओं को इसके मद्देनजर आपातकालीन आकस्मिक योजनाओं के साथ तैयार रहना ही होगा। हम भारतीय भी इसे लेकर अब और उदासीन नहीं रह सकते। अपने यहां बढ़ती आबादी, पर्याप्त योजना का अभाव, कमजोर पड़ते Infrastructure, Borewell की अंधाधुंध खुदाई, पानी की भारी मात्र में खपत और बेपरवाही से इसके इस्तेमाल को लेकर मुगालता पालने की वजह से हालात बिगड़ रहे हैं। यदि अब भी पानी के संरक्षण व इसके कम इस्तेमाल को लेकर कठोर कदम नहीं उठाए जाएंगे, तो वह दिन दूर नहीं, जब बेंगलुरु जैसे नगरों में राशन की तरह पानी की आपूर्ति करने पर प्रशासन मजबूर होगा। उल्लेखनीय है कि बेंगलुरु उन 11 वैश्विक नगरों में दूसरे स्थान पर है, जहां पानी तेजी से खत्म हो रहा है। इस सूची में साओ पाउलो पहले स्थान पर है, जबकि Beijing, Cairo, Jakarta, Moscow, Istanbul, Mexico City, London, Tokyo and Miami भी सिमटते जल वाले वैश्विक शहरों में शामिल किए गए हैं। 
अनुमान है कि अगले तीन दशकों में शहरी क्षेत्रों में पानी की मांग 50-70 फीसदी बढ़ेगी। भारत को ही अभी हर साल लगभग 1,100 अरब घनमीटर पानी की जरूरत होती है, जो साल 2050 तक बढ़कर 1,447 अरब घनमीटर होने का अनुमान है। जल संरक्षण और पानी के विवेकपूर्ण इस्तेमाल को लेकर हमें अब और देरी नहीं करनी चाहिए। एशियाई विकास बैंक ने अपने पूर्वानुमान में बताया है कि साल 2030 तक भारत में 50 फीसदी पानी की कमी हो जाएगी। भारत में पानी की जरूरतें मूल रूप से नदियों और भूजल से पूरी होती हैं। चूंकि हमारी अधिकतर खेती वर्षा पर आधारित है, इसलिए पानी की कमी यहां खाद्यान्न उत्पादन पर भयानक असर डाल सकती है। हमें जल-संचयन को शीर्ष प्राथमिकता में रखना ही होगा, क्योंकि लगभग 60 फीसदी सिंचाई-कार्यो में, 85 फीसदी ग्रामीण इलाकों में पीने के पानी में और 50 फीसदी शहरी जरूरतों को पूरी करने में हम भूजल का इस्तेमाल करते हैं। सरकार 6,000 करोड़ रुपये की विश्व बैंक से सहायता-प्राप्त ‘अटल भूजल’ योजना शुरू करने जा रही है। इस योजना के तहत सामुदायिक भागीदारी सुनिश्चित करते हुए देश के सात राज्यों के उन इलाकों में सतत भूजल प्रबंधन सुनिश्चित किया जाएगा, जहां इसका अधिकाधिक दोहन हो रहा है। जांच में यह पाया गया है कि देश के 6,584 ब्लॉक में से 1,034 ब्लॉक में पानी का अत्यधिक दोहन हो रहा है। पेयजल और स्वच्छता मंत्रलय की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में लगभग 77 प्रतिशत बस्तियों ने राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल परियोजना के तहत शत-प्रतिशत लक्ष्य हासिल कर लिया है, यानी 40 लीटर पानी प्रति व्यक्ति प्रति दिन की खपत वहां हो रही है। इतना ही नहीं, 55 फीसदी ग्रामीण आबादी अब नल के पानी का इस्तेमाल करने लगी है। रिपोर्ट के अनुसार पानी की गुणवत्ता को लेकर भी मंत्रलय ने खास कदम उठाए हैं। एक सब-मिशन योजना चलाई जा रही है, जिसके तहत 2020 तक आर्सेनिक व फ्लोराइड से प्रभावित 28,000 बस्तियों में पानी की गुणवत्ता सुधार ली जाएगी। एक अन्य गंभीर मसला, शहरों की जीर्ण-शीर्ण पाइपलाइन व्यवस्था है। इस कारण भी काफी सारा पानी बेकार चला जाता है।इससे पहले कि स्थिति गंभीर हो जाए, हमें तत्काल सामूहिक प्रयास शुरू कर देना होगा। तालाबों, पोखरों व जल संचयन की अन्य संरचनाओं को पुनर्जीवित व सुरक्षित करना होगा। खेती में पानी के कुशल उपयोग को बढ़ावा देना होगा। शहरी व ग्रामीण, दोनों क्षेत्रों की तमाम इमारतों में वर्षा जल संचयन की व्यवस्था अनिवार्य बनानी होगी। एक-एक बूंद पानी बचाने की हर व्यवस्था को बढ़ावा देना होगा। अगर हम जीवन से भरी इस ग्रह को अगली पीढ़ी के लिए सुरक्षित रखना चाहते हैं, तो हमें रीडूस (कम खपत करना), रीयूज (फिर से उपयोग करना) और रीसाइकिल (फिर से इस्तेमाल के लायक बनाना) को अपना मूलमंत्र बनाना ही होगा।

आपलोगों से मैं विनती करता हूँ कि पानी का गलत और फुजूल इस्तेमाल न करें और इससे दूसरों को भी रोकें |

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